केंद्र सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक लगातार 14 दिनों तक कोई मरीज नहीं मिला तो संबंधित जिला आरेंज जोन की श्रेणी में आता है। 21 दिनों तक मरीज नहीं मिलने पर ग्रीन जोन में आ जाएगा।रेड जोन में शामिल की गई राजधानी रायपुर में पिछले 10 दिन से कोरोना का नया मामला सामने नहीं आया है। जानकारों के मुताबिक 4 दिन नया केस नहीं मिला तो राजधानी खुदबखुद रेड से ऑरेंज जोन में आ जाएगी। रायपुर में 4 मई के बाद नया केस नहीं मिला है। हालांकि आमानाका क्षेत्र को कंटेनमेंट एरिया घोषित कर दिया है। युवक के संपर्क में आए 150 लोगों की रिपोर्ट नेगेटिव आई है। इसके बाद भी वहां से प्रतिबंध नहीं हटाया गया है। साइंस कॉलेज बंद है। एरिया के सभी दुकानें भी बंद हैं। अब तक रायपुर में सात, कोरबा में 28, दुर्ग में 10, कवर्धा में छह, सूरजपुर में छह, कोरिया में दो, राजनांदगांव, बिलासपुर में एक-एक मरीज मिला है। जबकि बाकी 20 जिले कोरोना फ्री जिले हैं।
प्रदेश में कहीं भी नहीं है हॉटस्पॉट
प्रदेश में एक भी हॉट स्पॉट नहीं बचा है ,अप्रैल के पहले और दूसरे महीने में कटघोरा में मरीज मिले थे जिससे कटघोरा भी हॉट स्पॉट बना हुआ था.कटघोरा में पिछले एक महीने से एक भी मरीज नहीं आया है,इसलिए कोरबा जिला ही हॉट स्पॉट से बाहर हो गया है, 3 मई को दुर्ग में 8 व कवर्धा में 6 मरीज मिले थे। सूरजपुर में 30 अप्रैल को तीन व एक मई को तीन मरीज मिले थे लेकिन तब से अभी तक एक मरीज भी नहीं आया है इसलिए ये जिला भी कोरोना फ्री होने के लिए अग्रसर है.

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प्रदेश में पिछले नौ दिनों से नया मरीज नहीं मिला है। यह राहत की बात है। प्रदेश में कोई हॉट स्पॉट नहीं होने का मतलब ये है कि किसी भी इलाके में नियमित रूप से नए मरीज नहीं मिल रहे हैं। कटघोरा में 4 से 14 अप्रैल तक यानी केवल 10 दिनों में 27 मरीज मिले थे। इससे स्वास्थ्य विभाग समेत प्रशासन की चिंता बढ़ गई थी। 3 मई को एक साथ आठ मरीज दुर्ग में व छह मरीज कवर्धा में मिले थे।ये प्रवासी मजदूर थे। ये चोरी-छिपे महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश से लौटे थे। 5 मई को फरीदनगर भिलाई की एक महिला कोरोना पॉजीटिव निकला। वह भंडारा महाराष्ट्र से लौटी थी। कोरोना से बचाव के लिए सरकार के निर्देश पर सभी मास्क और ग्लब्स पहन रहे हैं। शासन ने यूज किए हुए मास्क और ग्लब्स को फेंकने और नष्ट करने की गाइडलाइन तक जारी कर रखी है। इसके बावजूद इन्हें फेंकने में शहर में सबसे ज्यादा लापरवाही हो रही है। लोग इन्हें अपने घर या बाहर रखे डस्टबिन में फाड़कर या काटकर नहीं डाल रहे हैं, बल्कि कहीं भी फेंकने लगे हैं।गाड़ियों के चक्के और हवा के साथ फैलती यह यूज्ड सामग्री कई ऐसे लोगों के लिए खतरनाक हो सकती है, जैसे, फल-सब्जीवाले, मेडिकल कर्मचारी और सफाईकर्मी। बड़ा खतरा घरों के अासपास खेल रहे बच्चों को भी है, क्योंकि वे ऐसे मास्क को कौतूहल में टच कर सकते हैं। पर्यावरण मंडल के सदस्य सचिव आरपी तिवारी ने बताया कि एक बार फिर अपील की गई है कि होम क्वारेंटाइन या अन्य उपयोग के मास्क व ग्लब्स को डस्टबिन में डालने से पहले 72 घंटे पहले एक पेपर बैग में अलग से रखना चाहिए।

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