एसीबी व ईओडब्ल्यू के तत्कालीन प्रमुख समेत टीम के खिलाफ कूटरचना कर आपराधिक षड़यंत्र का आरोप
प्रदेश में भ्रष्टाचार रोकने वाले अफसरों पर ही कूटरचना कर आपराधिक षड़यंत्र का आरोप है। मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट डमरूधर चौहान ने धारा 156 (3) के तहत परिवाद को स्वीकार कर अभियुक्तों में एंटी करप्शन ब्यूरो के तत्कालीन प्रमुख व अन्य स्टाफ के विस्र्द्ध धारा 120 बी, 467, 468, 471, 472, 213, 218, 166, 167, 342, 382, 380, 409 के तहत प्रकरण दर्ज करने का आदेश दिया है,लेकिन पुलिस ने इस मामले में अज्ञात आरोपितों के खिलाफ अपराध दर्ज कर खानापूर्ति कर दी है। सिविल लाइन थाना प्रभारी शनिप रात्रे ने बताया कि अग्रसेन चौक स्थित साकेत एक्सटेंशन निवासी पवन अग्रवाल शासकीय अ वर्ग के ठेकेदार हैं। उनके भाई आलोक अग्रवाल जल संसाधन विभाग में कार्यपालन यंत्री थे। पवन अग्रवाल ने कोर्ट में परिवाद दायर किया था। इसमें उन्होंने बताया कि अपने भाई के कार्यक्षेत्र में कोई भी काम नहीं किया है। फिर भी उनके घर में दिसंबर 2014 को एसीबी की टीम ने सर्च वारंट के साथ छापा मारा और अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर स्वयं के द्वारा अर्जित की गई संपत्ति, जमीन के दस्तावेज, सोने-चांदी के जेवर, इंश्योरेंस के पेपर, नकदी रकम व अन्य दस्तावेज जब्त कर ले गए। सर्च वारंट में नंबर दर्ज नहीं किया था। वारंट में आलोक अग्रवाल के विस्र्द्ध एंटी करप्शन ब्यूरो में दर्ज अपराध के सिलसिले में यह कार्रवाई का लेख किया गया था।
इन बिंदुओं पर हुई शिकायत परिवादी पवन अग्रवाल ने सर्च वारंट में सिर्फ वर्ष 2014 दर्ज होना फिर कई दिनों बाद सर्च वारंट में अपराध क्रमांक 56 हाथ से लिखा होना, शेष लिखावट कंप्यूटर से प्रिंटेड होना, एंटी करप्शन ब्यूरो में वर्ष 2010 से 2013 के मध्य हुए भ्रष्टाचार की शिकायत पर अपराध क्रमांक 53/14, 1/15 से 4/15 दर्ज होना, अपराध क्रमांक 56/14 को एफआइआर की पुस्तिका में दर्ज नहीं होने के साथ ही फर्जी कार्रवाई, कूटरचित दस्तावेज तैयार कर षड़यंत्र करने का आरोप लगाते हुए आपराधिक प्रकरण दर्ज करने का आग्रह न्यायालय से किया था। सात माह तक मामले को दबाए बैठी रही पुलिस प्रकरण की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 24 मार्च 2020 को उक्त धाराओं के तहत अपराध दर्ज कर विवेचना के बाद अंतिम निर्णय से कोर्ट को अवगत कराने का आदेश दिया है। सात माह तक पुलिस इस मामले को दबाए बैठी रही।कोर्ट ने नामजद अपराध दर्ज करने का आदेश नहीं दिया है। आवेदक ने अपने आवेदन में नाम का जिक्र किया है। पुलिस ने कोर्ट के आदेश पर अपराध दर्ज कर प्रकरण को विवेचना में लिया है। जांच के दौरान साक्ष्य मिलने पर आरोपितों के नाम तय किए जाएंगे। किसी भी मामले में संज्ञान अपराध का होता है अपराधी का नहीं।
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