कोरोना के संक्रमण के बीच विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा ,फूलरथ प्रचालन 18 से 23 अक्टूबर तक ,जानिए क्या होती है फूलरथ परिक्रमा
विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा में इस वर्ष कोरोना के बढ़ते संक्रमण को दृष्टिगत रखते हुए सामाजिक दूरी के साथ फूलरथ को जगदलपुर के गोल बाजार में 18 से 23 अक्टूबर 2020 तक प्रचालन का निर्णय लिया गया है। परिक्रमा हेतु रथ खींचने के लिए जगदलपुर तहसील के 32 ग्रामों तथा तोकापाल तहसील के 4 ग्रामों के व्यक्ति स्थ प्रचालन के लिए आते है। रथ प्रचालन के लिए 36 गांवो से लगभग 400 श्रद्धालु शामिल होंगे। प्रत्येक गांव से 15 व्यक्ति लाने का लक्ष्य है।
रथ प्रचालन के लिए युवा श्रद्धालुओं को चिंहित किए जाने के लिए सम्बंधित ग्रामों के पटवारी, ग्राम पंचायत सचिव और कोटवारों का दल गठित किया गया है। जो 14 अक्टूबर 2020 को सांय 4.00 बजे तक रथ प्रचालन हेतु युवा श्रद्धालुओं को चिंहित कर अनुविभागीय दण्डाधिकारी, जगदलपुर को सूचित करेंगें। रथ प्रचालन करने वालों को दो दिनों तक होम आइसोलेसन में रखा जाएगा। इस वर्ष रथ प्रचालन करने वालों को ग्रामवार चिंहित करके पास प्रदाय दिया जाएगा। पासधारी व्यक्ति का ही प्रतिदिन रथ परिचालन में सहभागिता होगी। चिंहित व्यक्ति को रथ खीचने की समयावधि में अपने गृह निवास जाने की अनुमति नही होगी। उन्हंे निर्धारित आवासीय परिसर में रूकना अनिवार्य होगा। उन्हें समिति की ओर से भोजन उपलब्ध कराया जाएगा। इसके लिए मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत, जगदलपुर को नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है।
छत्तीसगढ़ प्रदेश का पहला लोकल 🏘️🏚️🏡ऑनलाइन प्रॉपर्टी क्लासिफाइड🏢🏬🏣(खरीदी -बिक्री /किराया/लीज )आपके मोबाइल और डेस्कटॉप पर
क्या होता है फूल रथ
बताते हैं कि राजा पुरषोत्तम देव को भगवान जगन्नााथ के आदेशानुसार 16 पहियों वाला रथ भेंट गया था। इसके साथ ही उन्हें रथपति की उपाधि भी मिली थी। इस विशाल रथ के चार पहियों को पहले अलग कर बस्तर में रथयात्रा की शुरूआत की गई थी, जो आज भी गोंचा महापर्व के नाम से चर्चित है। इधर शेष 12 पहियों का रथ बस्तर में करीब 608 साल से दशहरा पर चलाया जा रहा है। 12 पहियों वाले रथ चलाने की उन्हें स्वीकृति मिली थी, परंतु चलाने में असुविधा होने के कारण उस एक रथ को आठ और चार पहियों वाले दो रथों में विभाजित कर दिया गया। ऐसा अनुमान है कि पहले बड़े डोंगर, मधोता, कुरूषपाल और बस्तर आदि स्थानों में दशहरे का रूप कुछ संक्षिप्त रहा होगा। राजधानी जगदलपुर स्थानांतरित होने के बाद ही विस्तृत आयोजन और विशाल रथ को चलाने के लिए गुंजाइश बन सकी होगी। अश्विन शुक्ल द्वितीय से लेकर सप्तमी तक लगातार छह दिनों तक चार पहियों वाला रथ चलाया जाता है।चार पहियों वाले इस रथ को फूल रथ कहते हैं.
मां दंतेश्वरी का छत्र रथ में विराजित करने के बाद परिक्रमा सिरहासार से प्रारंभ हुई। फूल रथ परिक्रमा लगातार छह दिनों तक जारी रहते है और इसे खींचने के लिए आसपास के गांवों के ग्रामीण बड़ी संख्या में आते है इसे खींचने वाले मूलत: आदिवासी हैं जो देवी के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा प्रदर्शित करते हैं।जोगी बिठाई के दूसरे दिन द्वितीया से फूल रथ परिक्रमा शुरू हो जाती है।फूल रथ जैसे ही भगवान जगन्नाथ मंदिर के सामने पहुंचता है। केंवट, पनारा आदि जाति की सुहागिन महिलाएं भाव विभोर होकर चना-लाई निछावर किया करती हैं। वहीं जब रथ सिंहद्वार के सामने पहुंचता है तो राउरीन महिलाएं आरती उतारती हैं उसके बाद ही मांइजी का छत्र रथ से उतार कर मंदिर में पहुंचाया जाता है।